peoplepill id: madhav-rao-sapre
MRS
India
2 views today
2 views this week
Madhav Rao Sapre
Indian writer, translator

Madhav Rao Sapre

The basics

Quick Facts

Intro
Indian writer, translator
Places
Birth
Death
Age
55 years
The details (from wikipedia)

Biography

   
चित्र:Sapre Ji 2.jpg
माधवराव सप्रे

माधवराव सप्रे (जून १८७१ - २६ अप्रैल १९२६) हिन्दी के साहित्यकार, पत्रकार थे। वे हिन्दी के प्रथम कहानी लेखक के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने राष्ट्रीय कार्य के लिए उपयुक्त अनेक प्रतिभाओं को परख कर उनका उन्नयन किया। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी उनकी अग्रणी भूमिका थी। प्रखर संपादक के रूप में लोक प्रहरी व सुधी साहित्यकार के रूप में उनकी भूमिका लोक शिक्षक की है। कोशकार और अनुवादक के रूप में उन्होंने हिंदी भाषा को समृद्ध किया।

वर्ष 1902 में उन्होंने काशी नागरी प्रचारिणी सभा के 'विज्ञान शब्दकोश' योजना को मूर्तरूप देने की जिम्मेदारी अपने हाथों में ली। उन्होने न केवल विज्ञान शब्दकोश का सम्पादन किया, बल्कि अर्थशास्त्र की शब्दावली की खोजकर उन्होंने इसे संरक्षित और समृद्ध भी किया। कहा जाता है कि हिंदी में अर्थशास्त्रीय चिंतन की परंपरा प्रारंभ सप्रे जी ने ही किया। कुछ लोग उन्हें हिन्दी का प्रथम समालोचक भी मानते हैं।

परिचय

माधवराव सप्रे का जन्म सन् १८७१ ई० में दमोह जिले के पथरिया ग्राम में हुआ था। बिलासपुर में मिडिल तक की पढ़ाई के बाद मैट्रिक शासकीय विद्यालय रायपुर से उत्तीर्ण किया। १८९९ में कलकत्ता विश्वविद्यालय से बी ए करने के बाद उन्हें तहसीलदार के रूप में शासकीय नौकरी मिली लेकिन सप्रे जी ने भी देश भक्ति प्रदर्शित करते हए अँग्रेज़ों की शासकीय नौकरी की परवाह न की। सन १९०० में जब समूचे छत्तीसगढ़ में प्रिंटिंग प्रेस नही था तब इन्होंने बिलासपुर जिले के एक छोटे से गांव पेंड्रा से “छत्तीसगढ़ मित्र” नामक मासिक पत्रिका निकाली। हालांकि यह पत्रिका सिर्फ़ तीन साल ही चल पाई। सप्रे जी ने लोकमान्य तिलक के मराठी केसरी को यहाँ हिंदी केसरी के रूप में छापना प्रारम्भ किया तथा साथ ही हिंदी साहित्यकारों व लेखकों को एक सूत्र में पिरोने के लिए नागपुर से हिंदी ग्रंथमाला भी प्रकाशित की। उन्होंने कर्मवीर के प्रकाशन में भी महती भूमिका निभाई।

संस्थाओं को गढ़ना, लोगों को राष्ट्र के काम के लिए प्रेरित करना सप्रे जी के भारतप्रेम का अनन्य उदाहरण है। रायपुर, जबलपुर, नागपुर, पेंड्रा में रहते हुए उन्होंने न जाने कितने लोगों का निर्माण किया और उनके जीवन को नई दिशा दी।26 वर्षों की उनकी पत्रकारिता और साहित्य सेवा ने मानक रचे। पंडित रविशंकर शुक्ल, सेठ गोविंददास, गांधीवादी चिंतक सुन्दरलाल शर्मा, द्वारका प्रसाद मिश्र, लक्ष्मीधर वाजपेयी, माखनलाल चतुर्वेदी, लल्ली प्रसाद पाण्डेय, मावली प्रसाद श्रीवास्तव सहित अनेक हिंदी सेवियों को उन्होंने प्रेरित और प्रोत्साहित किया। जबलपुर को संस्कारधानी बनाने में सप्रे जी ने एक अनुकूल वातावरण बनाया जिसके चलते जबलपुर साहित्य, पत्रकारिता और संस्कृति का केंद्र बन सका। 1920 में उन्होंने जबलपुर में हिंदी मंदिर की स्थापना की, जिसका इस क्षेत्र में सांस्कृतिक और साहित्यिक गतिविधियों को बढ़ाने में अनूठा योगदान है।

१९२४ में हिंदी साहित्य सम्मेलन के देहरादून अधिवेशन में सभापति रहे सप्रे जी ने १९२१ में रायपुर में राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना की और साथ ही रायपुर में ही पहले कन्या विद्यालय जानकी देवी महिला पाठशाला की भी स्थापना की। यह दोनों विद्यालय आज भी चल रहे हैं।

माधवराव सप्रे के जीवन संघर्ष, उनकी साहित्य साधना, हिन्दी पत्रकारिता के विकास में उनके योगदान, उनकी राष्ट्रवादी चेतना, समाजसेवा और राजनीतिक सक्रियता को याद करते हुए माखनलाल चतुर्वेदी ने ११ सितम्बर १९२६ के कर्मवीर में लिखा था −

पिछले पच्चीस वर्षों तक पं॰ माधवराव सप्रे जी हिन्दी के एक आधार स्तम्भ, साहित्य, समाज और राजनीति की संस्थाओं के सहायक उत्पादक तथा उनमें राष्ट्रीय तेज भरने वाले, प्रदेश के गाँवों में घूम घूम कर, अपनी कलम को राष्ट्र की जरूरत और विदेशी सत्ता से जकड़े हुए गरीबों का करुण क्रंदन बना डालने वाले, धर्म में धँस कर, उसे राष्ट्रीय सेवा के लिए विवश करने वाले तथा अपने अस्तित्व को सर्वथा मिटा कर, सर्वथा नगण्य बना कर अपने आसपास के व्यक्तियों और संस्थाओं के महत्व को बढ़ाने और चिरंजीवी बनाने वाले थे।

कृतियाँ

सप्रे जी की कहानी 'एक टोकरी भर मिट्टी' को हिंदी की पहली कहानी होने का श्रेय प्राप्त है। सप्रे जी ने मौलिक लेखन के साथ-साथ विख्यात संत समर्थ रामदास के मूलतः मराठी में रचित 'दासबोध', लोकमान्य तिलक रचित 'गीतारहस्य' तथा चिन्तामणि विनायक वैद्य रचित 'महाभारत-मीमांसा' जैसे ग्रन्थ-रत्नों के अतिरिक्त दत्त भार्गव, श्री राम चरित्र, एकनाथ चरित्र और आत्म विद्या जैसे मराठी ग्रंथों, पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद भी बखूबी किया।

प्रकाशित कृतियाँ

मौलिक-
  • माधवराव सप्रे की कहानियाँ-१९८२ (सं०- देबीप्रसाद वर्मा, हिंदुस्तानी एकेडमी, इलाहाबाद से)
  • माधवराव सप्रे : प्रतिनिधि संकलन (सं०- मैनेजर पांडेय, नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया, नयी दिल्ली से)
अनूदित-
  • श्रीमद्भगवद्गीतारहस्य (मूल लेखक- बाल गंगाधर तिलक; नारायण पेठ, तिलक मंदिर, पुणे से, प्रथम संस्करण-१९१७ ई०, २८वाँ संस्करण-२००६)
  • महाभारत मीमांसा (मूल लेखक- चिंतामणि विनायक वैद्य; लक्ष्मीनारायण प्रेस, बनारस से प्रथम संस्करण-१९२० ई०; हरियाणा साहित्य अकादमी, चंडीगढ़ से १९९० ई०)

सप्रे संग्रहालय

माधवराव सप्रे की स्मृति में भोपाल में माधवराव सप्रे स्मृति समाचारपत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान की स्थापना की गयी थी। विजयदत्त श्रीधर इसके संस्थापक-संयोजक थे। 19 जून 1984 को माधवराव सप्रे समाचारपत्र संग्रहालय का मिशन प्रारम्भ हुआ। सन 1984 में रानी कमलापति महल के पुराने बुर्ज से सप्रे संग्रहालय की यात्रा आरम्भ हुई। स्थान की कमी पड़ने लगी तब, सन 1987 में आचार्य नरेन्द्रदेव पुस्तकालय भवन के ऊपर नगरपालिक निगम भोपाल ने एक मंजिल का निर्माण कर 3000 वर्गफुट स्थान उपलब्ध कराया। यह जगह भी कम पड़ी तब 19 जून 1996 को सप्रे संग्रहालय अपने भवन में स्थानांतरित हुआ। अब संग्रहालय के पास 11000 वर्गफुट स्थान उपलब्ध है।

विगत वर्षों में सप्रे संग्रहालय में 19846 शीर्षक समाचार पत्र और पत्रिकाएं, 28048 संदर्भग्रंथ, 1467 अन्य दस्तावेज, 284 लब्ध प्रतिष्ठ साहित्यकारों-पत्रकारों-राजनेताओं के 3500 पत्र, 163 गजेटियर, 179 अभिनंदन ग्रंथ, 282 शब्दकोश, 467 रिपोर्ट और 653 पाण्डुलिपियां संग्रहीत की जा चुकी हैं। शोध संदर्भ के लिए महत्वपूर्ण यह सामग्री 25 लाख पृष्ठों से अधिक है। संचित सामग्री में हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी, मराठी, गुजराती भाषाओं की सामग्री बहुतायत में है।

सप्रे संग्रहालय को बरकतउल्ला विश्वविद्यालय, भोपाल, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर और कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर ने शोध केन्द्र के रूप में मान्यता प्रदान की है।

सप्रे संग्रहालय में संचित सामग्री का सन्दर्भ लाभ उठाते हुए 600 से अधिक शोधार्थियों ने डी.लिट्., पीएच.डी. और एम.फिल. उपाधियों के लिये थीसिस पूरी की है। लाभान्वितों में देश-विदेश के शोध छात्र सम्मिलित हैं।

सप्रे संग्रहालय में जर्जर पाण्डुलिपियों और अन्य सन्दर्भ सामग्री के संरक्षण के लिये माइक्रोफिल्मिंग, डिजिटाइजेशन, लेमिनेशन आदि प्रविधियां अपनाई जा रही हैं।

सप्रे संग्रहालय ने लगभग डेढ़ दशक तक भारतीय पत्रकारिता कोश लिपिबद्ध करने की महत्वाकांक्षी परियोजना पर कार्य किया। दो खंडों में श्री विजयदत्त श्रीधर ने भारतीय पत्रकारिता कोश तैयार किया है। भारतीय पत्रकारिता कोश के प्रथम खंड में सन 1780 से 1900 तथा दूसरे खंड में सन 1901 से 1947 तक की भारतीय पत्रकारिता का इतिवृत्त दर्ज है। भारत में सभी भाषाओं के समाचारपत्रों और पत्रिकाओं का प्रामाणिक वृत्तांत लिपिबद्ध करने के साथ-साथ सन 1947 तक के भारत के पूरे भूगोल को भी इसमें समाहित किया गया है। सप्रे संग्रहालय के विपुल संदर्भ-संग्रह के अलावा राष्ट्रीय पुस्तकालय कोलकाता, बंगीय साहित्य परिषद कोलकाता और राष्ट्रीय अभिलेखागार नई दिल्ली से भी तथ्य जुटाये गये। अधिकांश सामग्री प्राथमिक स्रोत पर आधारित है।

समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के पृष्ठों से आजादी की लड़ाई का वृत्तांत संजोया जा रहा है। इसे पुस्तकाकार प्रकाशित किया जाएगा। इस रूप में यह अब तक लिखे गये स्वतंत्रता संग्राम के इतिहासों से भिन्न संदर्भ और साक्ष्यों का संदर्भ ग्रंथ तैयार हो सकेगा।

विज्ञान संचार अभिलेखागार

पत्रकारिता के उन्नयन के सप्रे संग्रहालय के उद्देश्य को अधिक अर्थवान और आधुनिक स्वरूप प्रदान करने के लिए सन्‌ २००६ में राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद के सहयोग से विज्ञान संचार अभिलेखागार की स्थापना की गई। मीडिया में विज्ञान विषयों के लोकप्रिय लेखन का प्रशिक्षण और प्रोत्साहन देने, समाज में वैज्ञानिक चेतना का वातावरण बनाने, मीडिया कर्मियों और विज्ञान लेखकों को संदर्भ सामग्री उपलब्ध कराने तथा विज्ञान लेखन के कौशल को निखारने की दिशा में विज्ञान संचार अभिलेखागार कार्य कर रहा है।

सन्दर्भ

  1. पत्रकारिता को राष्ट्रीय और लोकधर्मी संस्कार देने वाले संपादक थे माधवराव सप्रे
  2. "पत्रकारिता व साहित्य के ऋषि माघव सप्रे". आरंभ. मूल (एचटीएमएल) से 8 अगस्त 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २ मई २००९.
  3. "माधवराव सप्रे का महत्व". तद्भव. मूल से 24 नवंबर 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २ मई २००९.
  4. हिन्दी कहानी का इतिहास, भाग-1, गोपाल राय, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली, संस्करण-2011, पृष्ठ-48.
  5. महाभारत-मीमांसा, लक्ष्मीनारायण प्रेस, बनारस, प्रथम संस्करण-1920 ई०, पृष्ठ-4 (भूमिका)।

बाहरी कड़ियाँ

The contents of this page are sourced from Wikipedia article. The contents are available under the CC BY-SA 4.0 license.
Lists
Madhav Rao Sapre is in following lists
comments so far.
Comments
From our partners
Sponsored
Credits
References and sources
Madhav Rao Sapre
arrow-left arrow-right instagram whatsapp myspace quora soundcloud spotify tumblr vk website youtube pandora tunein iheart itunes