Shripad Krishna Belvalkar

Sanskrit scholar and educationalist
The basics

Quick Facts

IntroSanskrit scholar and educationalist
PlacesIndia
wasWriter Indologist
Work fieldLiterature Social science
Gender
Male
Birth1881, Narsobawadi, India
Death8 January 1967 (aged 86 years)
The details

Biography

श्रीपाद कृष्ण बेलवलकर (1881 - 1967) संस्कृत के विद्वान एवं शिक्षाविद् थे।

परिचय

श्रीपाद कृष्ण बेलवलकर का जन्म सन्‌ 1880 में हुआ। बचपन में सारी शिक्षा दीक्षा राजाराम हॉयर स्कूल और कालेज, कोल्हापुर तथा डेक्कन कॉलेज, पूना, में हुई। कुशाग्र बुद्धि होने के कारण परीक्षाओं में उत्तम स्थान प्राप्त करते रहे। सन्‌ 1902 में बी. ए. उत्तीर्ण हुए तथा भाषा, इतिहास, अर्थशास्त्र और दर्शन में क्रमश: 1904, 1905 और 1910 में एम. ए. की परीक्षाएँ उच्च श्रेणी में उत्तीर्ण की इसके बाद हार्वर्ड विश्वविद्यालय में डॉ॰ लनमन के निर्देशन में उच्च अनुसंधान का कार्य कर पी-एच. डी. की उपाधि प्राप्त की। अमरीका जाने के पूर्व डेक्कन कॉलेज में हस्तलिखित पोथियों के संग्रह के क्यूरेटर के रूप में सन्‌ 1907 से सन्‌ 1912 तक कार्य करते रहे। इसके केंटलाग का प्रथम खंड प्रकाशित करने के लिए प्रेस में दे दिया। इसके अतिरिक्त संस्कृत भाषा के भिन्न भिन्न व्याकरणों (Systems of Sanskrit Grammar) पर एक निबंध लिखकर 'मंडलीक सुवर्ण पदक' पारितोषिक के रूप में प्राप्त किया। अमरीका से लौटने पर डेक्कन कॉलेज में ही संस्कृत के प्राध्यापक बन गए। सन्‌ 1915 में सरकारी अधिकारियों के प्रयत्नों से यह कॉलेज बंद कर दिया गया। उसके बंद हो जाने तक के काल में संस्कृत के अध्यापक के रूप में वहीं पर बने रहे। डेक्कन कॉलेज के विद्यार्थियों के सुसंगठित प्रयत्नों से तथा डॉ॰ मुकुंदराव जयकर के उद्योग से डेक्कन कॉलेज की पुन: स्थापना हुई। सेवानिवृत्ति के पूर्व कुछ दिनों तक अहमदाबाद के गुजरात कॉलेज में भी संस्कृत प्राध्यापक के नाते तीन वर्ष तक कार्य किया।

उनके द्वारा लिखित तथा प्रकाशित उनकी निम्नलिखित पुस्तकें प्रसिद्ध हैं :

  • (१) Systems of Sanskrit Grammar,
  • (२) भवभूति के उत्तररामचरितम्‌ का संपादन और अनुवाद
  • (३) साहित्य अकादमी के लिए कालिदास का 'शाकुंतलम्‌',
  • (४) काव्यादर्श का अंगरेजी अनुवाद
  • (५) भगवद्गीता और ब्रह्मसूत्र भाष्य का सटिप्पण संस्करण,
  • (६) भारतीय दर्शनशास्त्र का इतिहास, खंड 2 से 7 ; इसे आपने डॉ॰ आर. डी. रानडे के सहयोग से तैयार किया।
  • (७) बसु और मलिक व्याख्यान वेदांत दर्शन पर,
  • (८) Papers on Various aspects of Indology in Oriental Journals of India and outside.

अमरीका से लौटने पर भांडारकर प्राच्य विद्या अनुसंधान संस्थान की स्थापना में उन्होंने प्रमुख रूप से योगदान दिया। इस संस्था का उद्घाटन समारोह जुलाई, सन्‌ 1917 में हुआ। स्थापना के बाद छह वर्षों तक आनरेरी सेक्रेटरी के पद को विभूषित किया। उसकी कार्यकारिणी समिति के तो वे ही निरंतर सदस्य होते रहे। पूना के संस्कृत कॉलेज की स्थापना में भी आपका हाथ रहा है। और उसके कार्यों से भी आपका निकटवर्ती संबंध रहा है। सन्‌ 1912 की 6 जुलाई की बैठक में भांडारकर रिसर्च इंस्टीट्यूट के तत्वावधान में प्रधान संपादक के नाते 1943 से 1961 तक बेलवेलकर जी ने सुचारु रूप से कार्य संपन्न किया तथा भीष्म पर्व, शांति पर्व, आश्रम वासिक, मौसल, महाप्रस्थानिक और स्वर्गारोहण पर्वों के आप संपादक भी रहे। इनके सिवा प्रत्येक खंड के संपादन कार्य में बेलवेलकर जी का मार्गदर्शन मिलता रहा है।

अखिल भारतीय ओरिएंटल कानफरेंस का प्रथम अधिवेशन सन्‌ 1919 में हुआ था। इसमें सम्मिलित होकर प्रारंभ से ही हर अधिवेशन में आपने कार्य संपन्न किया। कई वर्षों तक इस संस्था के सेक्रेटरी भी बने रहे। सन्‌ 1943 में बनारस में जब इसका वार्षिक अधिवेशन हुआ तब आप उसके सभापति बनाए गए।

अनुसंधान और लेखन को अपने जीवन का प्रधान व्यवसाय मानकर वे कार्य करते रहे। कई महत्वपूर्ण संस्कृत ग्रंथों का आलोचनात्मक संपादन, अनुवाद तथा उपनिषद्, वेद, सांख्य, भगवद्गीता, वेदांतसूत्र आदि विषयों पर खोजपूर्ण स्वतंत्र निबंध (करीब करीब 40-50 की संख्या में) प्रकाशित किए। इससे प्राच्यविशारदों में भारत के बाहर भी उनकी कीर्तिपताका फहराने लगी। 22 सितंबर 1966 के दिन राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन के द्वारा महाभारत के संपादन कार्य की पूर्णाहुति सुसंपन्न की गई। तब वयोवृद्ध श्री बेलवेलकर जी का भी रौप्य करंडक देकर अन्य विद्वान्‌ और शास्त्रियों के साथ सम्मान किया गया।

इन्हें भी देखें

  • डेक्कन कॉलेज
  • भाण्डारकर प्राच्य शोध संस्थान

बाहरी कड़ियाँ

The contents of this page are sourced from Wikipedia article on 24 Mar 2020. The contents are available under the CC BY-SA 4.0 license.